आंतरिक खुशी

कभी आपने सोचा है कि क्यों कुछ लोगों की आपस में नहीं बनती घर परिवार में मां- बेटे, पिता- पुत्र, भाई- बहन, भाई -भाई, पति -पत्नी की आपस में नहीं बनती, इसका कारण है हमारे सोचने का तरीका बदल गया है।

हमने दिल से सोचना बंद कर दिया है दिमाग से सोच कर निर्णय लेने को ही जैसे हम पूरी महत्वता दे रहे हैं, बातों को पकड़कर रखने से यह सारी स्थिति बनती है। ऑफिस में किसी ने कुछ बोल दिया तो सारे दिन वही सोचते रहते हैं, किसी ने बहुत अपमानित किया है कई साल, पिता सिर्फ डांट ही लगाते रहते है, दोस्त ने कुछ बोल दिया, पड़ोस में किसी ने कड़वी बात बोल दी, न्यूज़ में कुछ पढ़ लिया, मोबाइल में कुछ देख लिया, यही सारी बाते मन से लगाए रहते है, और अच्छी बातों को सोचने का प्रयास ही नहीं करते तो दिल से कैसे सोच पाएंगे फिर तो दिमाग ही सोचेगा और जब दिमाग सोचता है, तो हम अपने रिश्ते बिगाड़ देते हैं क्योंकि उस निर्णय में प्यार तो है ही नहीं, हमने तो यह सोच कर निर्णय लिया है कि हमारा इसमें फायदा है या नुकसान, और जो दिल से निर्णय लेते हैं, सोचते हैं वह रिश्ते तोड़ने में यकीन नहीं करते उन्हें निभाते हैं।

यही बात हमारे मन को भारी कर देती है, हम मन ही मन घुटन महसूस करते है,आज जो हुआ उसे उसी समय भूलने की आदत डालें तो हम हल्का महसूस करेंगे। दिल से सोचने वाले के प्रति ही ज्यादा लोग आकर्षित होते हैं उसके आसपास सकारात्मक वातावरण होता है दिमाग से सोचने से तो महाभारत ही हुआ है और रामायण में देखें तो प्रभु श्री राम ने दिमाग से सोचा होता तो उन्हें वनवास ही नहीं जाना पड़ता क्यों उन्होंने अपने दिल की बात सुनी। मन को शांति सुकून और आंतरिक खुशी तो दिल से सोचने से ही मिलती है, क्योंकि तब हम दूसरों के लिए सोचते हैं अपने स्वार्थ के लिए नहीं।

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nivedita Barkhade

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